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सरोवर में जल लेने गये युधिष्ठिर को उस सरोवर में रहनेवाले यक्ष ने चार प्रश्न किये, और कहा कि उन चार प्रश्नों के उत्तर देने पर हि वह सरोवर का जल ले सकते हैं । तब उन के बीच निम्न प्रश्नोत्तरी हुई;
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यक्ष: का वार्ता किमाश्चर्यं कः पन्था कश्च मोदते । इति मे चतुरः प्रश्नान् पूरयित्वा जलं पिब ॥
कौतुक करने जैसी क्या बात है ?आश्चर्य क्या है ?कौन सा मार्ग है ?कौन आनंदित रहता है ?मेरे इन चार प्रश्नों के उत्तर देने के पश्चात् हि पानी पी ।
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युधिष्ठिर: मासर्तुवर्षा परिवर्तनेन सूर्याग्निना रात्रि दिवेन्धनेन । अस्मिन् महामोहमये कराले भूतानि कालः पचतीति वार्ता ॥
इस मोहमयी कडाई में, महिने, वर्ष इत्यादि के परिवर्तन से, सूर्यरुप अग्नि के इंधन से रात-दिन काल प्राणियों को पकाता है; यह कौतुक करने जैसी बात है ।
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अहन्यहनि भूतानि गच्छन्ति यममन्दिरम् । शेषा जीवितुमिच्छन्ति किमाश्चर्यमतः परम् ॥
हर रोज़ कितने हि प्राणी यममंदिर जाते हैं (मर जाते हैं), वह देखने के बावजुद अन्य प्राणी जीने की इच्छा रखते हैं, इससे बडा आश्चर्य क्या हो सकता है ?
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श्रुति र्विभिन्ना स्मृतयोऽपि भिन्नाः नैको मुनि र्यस्य वचः प्रमाणम् । धर्मस्य तत्त्वं निहितं गुहायाम् महाजनो येन गतः स पन्थाः ॥
श्रुति में अलग अलग कहा गया है; स्मृतियाँ भी भिन्न भिन्न कहती हैं; कोई एक ऐसा मुनि नहीं केवल जिनका वचन प्रमाण माना जा सके; (और) धर्म का तत्त्व तो गूढ है; इस लिए महापुरुष जिस मार्ग से गये हों, वही मार्ग लेना योग्य है ।
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दिवसस्याष्टमे भागे शाकं पचति गेहिनी । अनृणी चाप्रवासी च स वारिचर मोदते ॥
हे जलचर ! दिन के आठवें भाग में (सुबह-शाम रसोई के वक्त) जिसकी गृहिणी खाना पकाती हो, जिसके सर पे कोई ऋण न हो, जिसे (अति) प्रवास न करना पडता हो, वह इन्सान (घर) आनंदित होता है ।
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